🔴 प्रस्तावना
चीन के उत्तरी शहर तियानजिन में 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट को चीन ने अब तक का “सबसे बड़ा समिट” बताया है।
यह समिट ऐसे समय पर हो रहा है जब वैश्विक राजनीति में कई भू-राजनीतिक तनाव, अमेरिका द्वारा कई देशों पर टैरिफ, रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत-चीन संबंधों में धीरे-धीरे आ रहे बदलाव अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य को प्रभावित कर रहे हैं।
इस समिट को चीन न केवल SCO के विस्तार और मजबूती के तौर पर प्रस्तुत कर रहा है, बल्कि वह दुनिया को यह संदेश देना चाहता है कि ग्लोबल साउथ (Global South) का नेतृत्व करने में वह सक्षम है।
📌 SCO का इतिहास और महत्व
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SCO की स्थापना 2001 में शंघाई में हुई थी।
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शुरुआती सदस्य: चीन, रूस, कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान।
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2017 में भारत और पाकिस्तान जुड़े।
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हाल के वर्षों में ईरान और बेलारूस को भी पूर्ण सदस्यता मिली।
आज SCO के पास:
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10 सदस्य देश
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14 डायलॉग पार्टनर
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कई पर्यवेक्षक देश
👉 SCO अब दुनिया की आधी आबादी, एक चौथाई भू-भाग और लगभग 25% वैश्विक GDP का प्रतिनिधित्व करता है।
🛡️ शंघाई स्पिरिट क्या है?
SCO की मूल आत्मा को “शंघाई स्पिरिट” कहा जाता है। इसमें शामिल हैं:
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परस्पर विश्वास
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समान लाभ
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परामर्श और संवाद
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सांस्कृतिक विविधता का सम्मान
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साझा विकास की दिशा में सहयोग
चीन ने बार-बार यह दोहराया है कि यही सिद्धांत SCO को अन्य संगठनों से अलग बनाते हैं।
🏛️ तियानजिन समिट: क्या खास है?
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यह SCO के इतिहास का सबसे बड़ा सम्मेलन है।
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25वीं परिषद बैठक और SCO Plus बैठक का आयोजन।
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“तियानजिन घोषणा पत्र” जारी किया जाएगा।
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अगले 10 वर्षों की विकास रणनीति को मंजूरी मिलेगी।
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सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक सहयोग पर कई दस्तावेज़ जारी होंगे।
🌐 कौन-कौन देश हिस्सा ले रहे हैं?
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सदस्य देश (10): चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, कज़ाखस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ईरान और बेलारूस।
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निरीक्षक देश: मंगोलिया।
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डायलॉग पार्टनर (14 में से 8): अज़रबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, मालदीव, नेपाल, तुर्की, मिस्र, म्यांमार।
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विशेष आमंत्रित देश: इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, वियतनाम, तुर्कमेनिस्तान।
👉 इस विस्तार से यह साफ है कि SCO अब सिर्फ मध्य एशिया तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एशिया, यूरोप और अफ्रीका तक इसका दायरा बढ़ चुका है।
🗣️ शी जिनपिंग क्या कहना चाहते हैं?
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस समिट में:
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SCO को ग्लोबल साउथ का प्रमुख मंच बनाने का संदेश देंगे।
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“शंघाई स्पिरिट” पर जोर देंगे।
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बदलते वैश्विक हालात में SCO की भूमिका समझाएंगे।
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वैश्विक शासन सुधार (Global Governance Reform) पर चर्चा करेंगे।
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बहुपक्षीयता (Multilateralism) और संरक्षणवाद (Protectionism) के खिलाफ बात करेंगे।
🇮🇳 भारत की भूमिका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 साल बाद चीन पहुंचे हैं।
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पिछले कुछ वर्षों से भारत-चीन संबंध तनावपूर्ण रहे हैं।
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हालांकि, हाल में कुछ बर्फ पिघलने के संकेत मिले हैं।
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इस समिट में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात पर विशेष ध्यान है।
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भारत के लिए SCO एक महत्वपूर्ण मंच है क्योंकि यह उसे मध्य एशिया, रूस और चीन के साथ रणनीतिक सहयोग का अवसर देता है।
🇷🇺 रूस और SCO
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राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इस समिट में शामिल हैं।
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युक्रेन युद्ध के बाद रूस पश्चिम से अलग-थलग हो गया है।
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ऐसे में SCO रूस के लिए एक महत्वपूर्ण राजनयिक मंच है।
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चीन और रूस की नजदीकियों को यह मंच और गहरा कर सकता है।
📊 चीन का आर्थिक दृष्टिकोण
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2024 में SCO देशों के साथ चीन का व्यापार $512.4 अरब तक पहुंचा।
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चीन चाहता है कि SCO देशों के बीच ऊर्जा, ग्रीन एनर्जी, डिजिटल अर्थव्यवस्था और इंडस्ट्रियल सप्लाई चेन पर और सहयोग बढ़े।
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यह संगठन चीन की “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI)” को भी मजबूती दे सकता है।
📰 चीनी मीडिया का रुख
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ग्लोबल टाइम्स: SCO वैश्विक दक्षिण की एकता को बढ़ावा देगा।
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पीपल्स डेली: SCO “नए प्रकार के अंतरराष्ट्रीय सहयोग” का मॉडल है।
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शिन्हुआ: SCO वैश्विक शासन के संकट को हल करने में मदद करेगा।
👉 मीडिया रिपोर्ट्स में SCO को इतिहास की सही दिशा पर खड़ा संगठन बताया गया है।
⚖️ SCO बनाम BRICS
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SCO और BRICS दोनों ही ग्लोबल साउथ की आवाज उठाते हैं।
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दोनों ही अमेरिका के प्रभुत्व और एकतरफ़ा नीतियों का विरोध करते हैं।
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हालांकि, हाल में शी जिनपिंग ने BRICS से ज्यादा महत्व SCO को दिया है।
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SCO का तेजी से विस्तार यह दर्शाता है कि चीन इसे अपना प्राथमिक मंच बनाना चाहता है।
🚨 अफगानिस्तान की गैरहाजिरी
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2021 में तालिबान के काबिज होने के बाद से अफगानिस्तान ने किसी SCO समिट में उच्च प्रतिनिधि नहीं भेजा।
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इस बार भी अफगानिस्तान की अनुपस्थिति से यह स्पष्ट है कि तालिबान की भागीदारी पर सदस्य देशों में मतभेद बने हुए हैं।
🛡️ सुरक्षा और रणनीतिक पहलू
SCO की प्राथमिकताओं में शामिल हैं:
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आतंकवाद विरोधी सहयोग
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साइबर सुरक्षा
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क्षेत्रीय स्थिरता
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ऊर्जा सुरक्षा
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डिफेंस सहयोग
👉 चीन चाहता है कि SCO पश्चिमी गठबंधनों का विकल्प बने।
📈 वैश्विक महत्व
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भू-राजनीतिक बदलाव:
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अमेरिका और यूरोप के प्रभुत्व को चुनौती।
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ग्लोबल साउथ की एकजुटता।
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आर्थिक अवसर:
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ऊर्जा सुरक्षा।
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ग्रीन एनर्जी और डिजिटल ट्रेड।
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सांस्कृतिक और कूटनीतिक सहयोग:
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विभिन्न सभ्यताओं का सम्मान।
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साझा विकास की भावना।
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🔐 निष्कर्ष
तियानजिन में आयोजित यह SCO समिट सिर्फ एक कूटनीतिक आयोजन नहीं, बल्कि चीन की एक रणनीतिक चाल भी है।
शी जिनपिंग इस समिट से दुनिया को यह बताना चाहते हैं कि:
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चीन बहुपक्षीयता और सहयोग का नया केंद्र बन सकता है।
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ग्लोबल साउथ का नेतृत्व चीन करेगा।
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SCO पश्चिमी दबाव के विकल्प के रूप में उभर सकता है।
👉 सवाल यह है कि क्या इतने बड़े विस्तार के बाद SCO अपने उद्देश्यों में एकजुट रह पाएगा? या यह केवल राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन बनकर रह जाएगा?
फिलहाल इतना तय है कि SCO का वैश्विक प्रभाव बढ़ रहा है और तियानजिन समिट इसे एक नए स्तर पर ले गया है।
